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साक्षी भाव

किसी के पार्ट को देख कर या सुन कर आश्चर्य नही खाना है।ईर्ष्या नही करनी है
विश्व नाटक में हर आत्मा का पार्ट निश्चित है और उस समय उस अनुसार समय पर हर आत्मा कर्म करने के लिए बाध्य है।
साथ ही सतयुग त्रेता में जो राजाई चलती है उसमे अनेक प्रकार के पद होंगें और दो युगों तक आत्मा के पार्ट में अनेक प्रकार के परिवर्तन होंगे।उतार~चढाव होगा।क्योकि सदाकाल एक जैसा पार्ट किसी का भी नही रहेगा।
तो उस उतार~चढ़ाव के लिए वह आत्मा अभी वैसा ही पुरुषार्थ करेगी।इसलिए हमको किसी के पार्ट को देख कर या सुन कर आश्चर्य नही खाना है।ना ही किसको दोष देना है और ना ही किसी से ईर्ष्या,घृणा आदि करनी है।हमको हर एक का पार्ट और दृश्य साक्षी हो कर देखना है और अभीष्ठ पुरुषार्थ करना है।

टिप्पणियाँ

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