ओम शांति , "बाबा से अशरीरी भव का वरदान सहज प्राप्त करने की विधि क्या है??" ब्राह्मण जन्म मिलते ही हमें बाबा वरदानों के खजानों से भरपूर बना देते हैं ।अमृत वेले से लेकर रात्रि सोने तक बाबा हमारे साथ होते है । लेकिन बाबा का साथ वहीं महसूस कर सकता है जिसने बाबा को यथार्थ पहचान लिया हो । उसे सच्चे दिल से प्यार से स्वीकार किया है। बाप जो है जैसा है उसे वैसा ही अपना माना हो । हम जिसे प्यार करते हैं उसकी हर बात मानते हैं और उसको जैसे पसंद है वैसा हम बनने की पुरी कोशिश करते हैं । और वो हमारे बारे में कितनी अच्छी बातें करता है और हमें अपना मान के कितनी हमें समझानी देता है इसी नशे मैं हम सदा रहता है । बाप के बने ब्राहमण जन्म मिलते ही अशरीरी भव का वरदान बाप से मिलता है । बाबा कहते हैं ६३ जन्म देहभान में आकार दुःख पाया अब इस देह के भान से परे हो जाओ । अपने को आत्मा समझ मुझ एक बाप को ही याद करों । अशरीरी बनना अर्थात बाप समान बनना । अशरीरी बनना अर्थात देह भान से परे ,सुक्ष्म शरीर से भी परे । जैसे बाबा बिंदु स्वरुप है वैसे मैं आत्मा भी बाप समान बिंदु स्वरुप हूं , इस स्मृति में र
किसी के पार्ट को देख कर या सुन कर आश्चर्य नही खाना है।ईर्ष्या नही करनी है विश्व नाटक में हर आत्मा का पार्ट निश्चित है और उस समय उस अनुसार समय पर हर आत्मा कर्म करने के लिए बाध्य है। साथ ही सतयुग त्रेता में जो राजाई चलती है उसमे अनेक प्रकार के पद होंगें और दो युगों तक आत्मा के पार्ट में अनेक प्रकार के परिवर्तन होंगे।उतार~चढाव होगा।क्योकि सदाकाल एक जैसा पार्ट किसी का भी नही रहेगा। तो उस उतार~चढ़ाव के लिए वह आत्मा अभी वैसा ही पुरुषार्थ करेगी।इसलिए हमको किसी के पार्ट को देख कर या सुन कर आश्चर्य नही खाना है।ना ही किसको दोष देना है और ना ही किसी से ईर्ष्या,घृणा आदि करनी है।हमको हर एक का पार्ट और दृश्य साक्षी हो कर देखना है और अभीष्ठ पुरुषार्थ करना है।